2019 के लोकसभा चुनाव में 'हिन्दू लहर' क्या यूनिफ़ार्म सिविल कोड के मुद्दे पर आयेगी?
तीन तलाक़ का मुद्दा उत्तर प्रदेश चुनाव में गरमा रहा है. अब अगर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला शायरा बानो के पक्ष में गया, तो देश की राजनीति की तसवीर क्या होगी?
'राग देश' में क़मर वहीद नक़वी के विश्लेषण से कुछ अंश :
"........तीन
तलाक़ के मुद्दे पर
मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड की
जितनी भी दलीलें हैं,
वे तार्किक ज़मीन पर कहीं ठहरती
ही नहीं. बोर्ड ख़ुद ही मानता
है कि तीन तलाक़
ख़राब है, लेकिन फिर
भी उसे छोड़ने को
तैयार नहीं, क्योंकि उसका कहना है
कि तीन तलाक़ एक
साथ बोलने से शरीअत के
हिसाब से तलाक़ तो
हो ही जाता है!
लेकिन सवाल उठता है
कि जब पाकिस्तान, बांग्लादेश
समेत दुनिया के बीस से
ज़्यादा मुसलिम देशों में तीन तलाक़
को ख़ारिज किया जा चुका
है, तो फिर यहाँ
भारत में किस शरीअत
का हवाला दिया जा रहा
है? क्या उन बीस
मुसलिम देशों में किसी अलग
शरीअत का पालन किया
जाता है? ये सवाल
देश की बाक़ी ग़ैर-मुसलिम जनता को मथ
रहे हैं.
संयोग
से यह मुद्दा उत्तर
प्रदेश विधानसभा चुनाव के ठीक पहले
उठा है. तो विजयदशमी
पर 'जयश्रीराम', रामायण म्यूज़ियम या कैराना के
बहाने वोटों के ध्रुवीकरण में
जुटी बीजेपी इस 'अंडरकरेंट' को
क्यों न भुनाये? सच
यह है कि इस
मुद्दे पर मुसलिम पर्सनल
लॉ बोर्ड अपना विरोध जितना
मुखर करेगा, बीजेपी इस बहस को
उतना ही तेज़ करने
की कोशिश करेगी. क्योंकि कम से कम
इस मुद्दे पर बीजेपी पर
'साम्प्रदायिकता' या 'हिन्दू राष्ट्र'
का ठप्पा लगाना बहुत से लोगों
को 'कन्विन्स' नहीं करेगा. मायावती
जब दलित-मुसलिम गँठजोड़
की अपनी कोशिशों के
क्रम में मुसलमानों के
बीच घूम-घूम कर
कह रही हैं कि
उनका अपना एक 'क़ायद'
यानी रहनुमा होना चाहिए, तो
उसके जवाब के तौर
पर तीन तलाक़ का
मुद्दा बीजेपी को न सिर्फ़
हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण के
पुख़्ता तर्क देगा, बल्कि
उन दूसरी पार्टियों के 'सेकुलरिज़्म' के
पैमाने को भी कटघरे
में खड़ा करेगा, जो
इस मुद्दे पर खुल कर
बोलने से क़तरा रही
हैं.
और
अगर इस बीच उत्तर
प्रदेश चुनाव से पहले, कहीं
सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला शायरा
बानो के पक्ष में
आ गया तो बीजेपी
के लिए सोने पर
सुहागा. फ़ैसला चुनाव के पहले न
भी आये, तो भी
बीजेपी इस मुद्दे को
किसी न किसी तरीक़े
से बहस के केन्द्र
में तो बनाये ही
रखना चाहेगी. यह तो हुई
एक बात. दूसरी बात
यह कि अगर अदालत
ने तीन तलाक़ को
ख़ारिज कर दिया, तो
क्या तब भी मुसलमान
इस फ़ैसले का विरोध करते
रहेंगे? और ऐसे में
उन्हें कितना और किसका समर्थन
मिलेगा? क्या सेकुलर पार्टियाँ
तब फ़ैसले के ख़िलाफ़ खड़े
होने का जोखिम उठायेंगी?
क्या उन्हें हिन्दू वोटों के हाथ से
निकल जाने का डर
नहीं सतायेगा?......"
क़मर वहीद नक़वी के इस विश्लेषण को उनके साप्ताहिक स्तम्भ 'राग देश' में विस्तार से पढ़िए इस लिंक पर:
http://raagdesh.com/triple-talaq-issue-may-shape-future-indian-politics/